टीकमगढ़। समाज में मृत्यु भोज पुरानी प्रथा है या कुप्रथा यह दोनों बिंदु समाज की तार्किक स्थिति पर निर्भर करती है हमारे बीच एक पुरानी कहावत व्याप्त है जब जागे तभी सवेरा जैसे-जैसे समाज में शिक्षा रूपी बीज अंकुरित होगा वैसे-वैसे समाज में व्यवस्था और परंपरा दोनों पर विचार किया जाएगा और सही को स्वीकार किया जाएगा और गलत का विरोध सामने आएगा अब देखना यह होगा कि टीकमगढ़ की अहिरवार समाज मृत्यु भोज के बहिष्कार करने की मुहिम को कहा तक पहुंचा पति है,रविवार को शहर के ढोंगा स्थित बौद्ध विहार कालोनी में गनपत अहिरवार शिक्षक के पिताजी स्वर्गीय खुंसाई अहिरवार के निधन पर जिला अहिरवार समाज टीकमगढ़ द्वारा चलाई जा रही मुहिम के अन्तर्गत मृत्यु भोज जैसी कुप्रथा अभियान से प्रेरित होकर परिवार जनों ने मृत्यु भोज के स्थान पर संयुक्त रूप से श्रध्दांजली सभा का आयोजन किया। जिसमें सभी उपस्थित जनों ने शोकसभा कर दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की ।
इस मौके पर सभी ने संकल्प लिया कि न हम मृत्यु भोज करेंगे और न ही हम अपने घर मृत्यु भोज करायेंगे।इस दूषित परम्परा को समाप्त कर के रहेंगे।साथ ही दहेज प्रथा और नशा मुक्ति अभियान को जारी रखने पर भी
सामूहिक विचार विमर्श किया गया।इस मौके पर समाज मैं फैलीं अनेक कुरीतियों को समाप्त करने पर भी लोगों ने अपने विचार रखे। जिसका सभी ने सामूहिक रूप से समर्थन किया।
आज बड़ी ही संख्या में समाजसेवी,अनेक सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी गण , ग्रामीण क्षेत्रों से आए समाज के लोग उपस्थित रहे।
अंत में गनपत अहिरवार जी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
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