दलित मृतशवों को मुक्तिधाम पहुंचने से पहले लांघना पड़ता है तालाब

टीकमगढ़। आजादी के लगभग 7 दशक बीत जाने के बाद  बुंदेलखंड के टीकमगढ़ शहर से लगे मामोंन गांव में दलितों को शमशान घाट तक जाने के लिए तालाब तो पार कर जाना पड़ता है. बताया गया गांव के उच्च वर्गों का शमशान घाट अलग है जिसके पास जाने के लिए पक्की सड़क है और दलितों के शमशान घाट तक जाने के लिए  कोई रास्ता नहीं है जो यह साबित करता है कि आज भी दलित कुल में जन्म लेना मनुष्य के लिए बोझ है । इस प्रकार का सरकारी सिस्टम अपने आप में विकाश की पोल खोलता नजर आता है,लोगो ने कहा यह सब वर्षों से  झेल रहे है सर्दी का मौसम हो या फिर बरसात का जान जोखिम के डालकर  मजबूरन  पानी से होकर जाना पड़ता है। बारिश के समय तो बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
हाल ही में ग्राम मामोन निवासी मलू  अहिरवार का एक्सीडेंट में दुखद निधन हो गया था । उनकी अंत्येष्टि के लिए उनके परिवार जनों एवं गांव बालों को तालाब लांघ कर शमशान घाट तक जाना पड़ा बीजेपी और कांग्रेस के लोग विकाश की गंगा बहाने का राग अलाप रहे है ऐसे में ये घटना उनके मुंह पर तमाचा है और उनके विकास की पोल खोलने का काम कर रही है। समाज सेवी हृदेश कुशवाहा ने कहा लोगो का मानना है कि जन्म और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है फिर ईश्वर की मंशा के विरुद्ध यह सब देखना पड़ता है यही तो देश का दुर्भाग्य है जहां दलितों को जन्म से लेकर मरने तक अपमान बर्दाश्त करना पड़ता है  प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

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